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30 Mar 2020 · 1 min read

मेरे शब्द

मेरे सारे शब्द झर गए
उन्हें खिलने थे फूल बनके
महकने तो थे उन्हें साथी हम – हम करके
मगर भूख से चिल्लाते कंठो की
हृदय भेदी चीत्कार में वो सब दब गए
मौत से बेपनाह भागते कदमों ने कुचल डाला है उन्हें
स्याह रात जैसे गिर गया हो कागज पे बिखरे फूल जैसे शब्द पे स्याही बन के
स्याह रातों के कपाट से झांकता हुआ
चमकता निर्ल्लज चांद जो हंसता है हहा कर के
बरसाई थी अपनी चमकती चांदनी के साथ आग
उन सभी वीरान पड़े घरों पे जिनकी खूटियों से
लटक रहे हैं अब भी लात्ते और दीवाल में बने आलों पे
फूटे पड़े हैं संजोए हुए सपनों के गुल्लक
दो चार सपने अब भी छिपे बैठे हैं उकडू
और जिंदा जिस्म निकल चुका है सड़कों पे
जीने की अपनी पुरानी ख्वाहिश के साथ
उस चांद के चमकती चांदनी में जल गए मेरे सारे शब्द
मेरे सारे शब्द कागज पर गिरने से पहले ही आत्म हत्या कर चुके है… शायद
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
2 Likes · 433 Views
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