कविता : मेरे मन के मंदिर में
मेरे मन के मंदिर में तो, बसे श्याम हैं मुरली वाले।
नाम जपा है जबसे प्रभु का, मेरे सब सकंट हर डाले।।
मुस्क़ान मनोहर है मुख पर, गले कुंज की सुमाला है।
मुकुट मोर पंखों का सिर पर, नैनों में काजल डाला है।।
बजा बाँसुरी की धुन मनहर, हरदिल को जीता करते हैं।
कहे बिना यार सुदामा का, मन भी मोहन पढ़ लेते हैं।।
रक्षा सबकी करने वाले। नहीं किसी से डरने वाले।।
आनंद मग्न रहते हैं सब। नाम कृष्ण का जपने वाले।।
दंभ नाग कालिया का तोड़ा। नहीं पूतना को भी छोड़ा।।
असुर कंश मामा को मारा। इंद्रदेव भी जिससे हारा।।
मेरे मन के मंदिर में तो, बसे श्याम हैं मुरली वाले।
नाम जपा है जबसे प्रभु का, मिट गये हृदय के सब छाले।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना ‘मेरे मन के मंदिर में’