मेरे मंदिर के राम
ऋषि कुमार जी धार्मिक दयालु प्रकृति के इंसान। राम मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने भी सहयोग करना चाहा । अपने खर्चे और बचत का आकलन किया
निष्कर्ष निकाला कि दस हजार रुपए तो दिए ही जा सकते हैं । यह राशि उनकी क्षमता से कुछ अधिक थी , किन्तु श्रद्धा उन्हें रोक न सकी और वे दस हजार लेकर दान देने निकल पड़े । कुछ दूरी पर रास्ते में एक जगह उन्होंने देखा , जीर्ण-शीर्ण देह लिए एक व्यक्ति आंगन में चिंतित भाव से बैठा था । उसका टूटा सा घर देख जिज्ञासा और दया के भाव लिए वे उसके पास गए । पूछने पर पता चला कि उसका घर हल्के से तूफान को भी झेल नहीं पाया और बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है । मज़दूरी करके किसी तरह परिवार को पालने वाला वह अब अपने टूटे घर को कैसे ठीक करवाए । ऋषि कुमार जी उसकी हालत देख द्रवित हो उठे , अपने पास के दस हजार रुपए उसके हाथों में देते हुए बोले , अपने मंदिर की मरम्मत करवा लेना भाई । मेरे राम कदाचित यहीं निवास करते मिल जाएं ।
अशोक सोनी
भिलाई ।