मेरे भैया मेरे अनमोल रतन
वीर लिखूं कि धीर लिखूं
या खुशी की शमशीर लिखूं
काट के रख दर्द के दानव;
छांट के रख दे दुख के बादलI
आए घर में तुम जिस पल ;
खुशी की धारा बही निष्छल
आज भी याद है खुशियों का स्वरूप ;
लगते थे ज्यों कृष्ण अनूप |
चक्र समय का कहां रुका है?
नरों में भेड़िया कहां झुका है?
पर जब- जब देखूं मैं तुमको;
पाऊं सुल्ताना सी खुद खुद को |
भटकन की राह पर बने आलोक
चिंता मेरी गई परलोक।
रूप ,यश ,कीर्ति के तुम स्वामी
हम बहनों के अंतर्यामी |
ईश्वर जन्म अगले जो आऊं
तुम सा ही भ्राता बस पाऊं।
तुम रहो मस्त ;तुम रहो स्वस्थ ;
तुम रहो हर चीज में आश्वस्त
हर खुशी तुम्हारी; हर विजय तुम्हारा ;
हर निराशा से करो किनारा।
जीवन में हर जीत हो हासिल;
हर हुनर तुम्हारा; रहो सदैव ही काबिल !
तुम्हारा जीवन ख़ुशी की परिधि
कहती है तुम्हारी दीदी !