मेरे भी तो कान है तरसे, मधुर मुरलिया सुनने को। मेरा भी तो दिल है धड़के दर्शन तेरे करने को।।
मेरे भी तो कान है तरसे, मधुर मुरलिया सुनने को।
मेरा भी तो दिल है धड़के दर्शन तेरे करने को।।
हे नंदलाल सुनो धड़कन और दौड़ के तुम आ जाओ ना
जनम मरण के बन्धन से अब मुक्ति तुम दे जाओ ना।।
©प्रशान्त तिवारी”अभिराम”