मेरे प्यारे श्री हरि !!
मेरे श्री हरि की बात ही निराली है ,
सांवली सलोनी छवि मतवाली है ।
मुख पर मोहक मुस्कान प्यारी सी ,
नयनों में स्नेह की भरी प्याली सी ।
भावनाओं का अथाह सागर प्रभु में ,
दया ,करुणा ,ममता ,स्नेह प्रभु में ।
मगर जब भी क्रोध आता है उनको ,
नहीं बख्शते फिर वो पापियो को ।
इसी वजह से उन्होंने अवतार लिए,
हर रूप में आकर प्राणी तार दिए ।
उनकी दशावतार की कथा प्रसिद्ध है,
वो जन्म लेते रहें हर बार ये सिद्ध है ।
प्रहलाद के रक्षक तो ध्रुव के पिता बने ,
सती अनुसूया के पुत्र, सुदामा के मित्र बने।
मेरे प्रभु ने हर रूप में ,हर नाता निभाया,
भक्तों को निज सामिप्य का भान करवाया।
मनुष्य ही नहीं अन्य पशुओं के काम आए,
हाथी को बचाने मगर से वोह दौड़े चले आए ।
मनुष्य रूप में ही नही पशु रूप धारण किया,
सभी प्राणियों को स्वयं एकाकार उन्होंने किया।
सिंह,मत्स्य,कच्छप,हंस वराह रूप लेकर,
रख दिया मनुष्य/दानव का अहंकार मिटाकर।
पापियों का नाश का धरती का उद्धार किया,
और फिर सृष्टि में प्रेम राज्य स्थापित किया।
कभी राम बनकर सिया के ह्रदय सम्राट बने,
और कृष्ण बनकर राधा के सांवरे वो बने।
उन्होंने माता को जग में ऊंचा स्थान दिया,
तभी उन्होंने जन्म लेने माता को चुन लिया।
माताअदिति ,माता कौशल्या और माता यशोदा,
सदा पूजनीय रही उनको सभी देवियां सर्वदा।
भक्त ,संत जनों और माता पिता का सम्मान,
हर अवतार में उन्होंने यह संदेश दिया महान ।
अहंकारियों का समूल नाश तो हर युग में किया,,
और भागवत गीता में कर्म योग का उपदेश दिया।
कितने दयालु और बड़े दिल वाले ,स्नेही है प्रभु ,
निज संतानों को सुमार्ग दिखाने को तत्पर रहते प्रभु ।
पहले तो बहुत अवसर देते मनुष्य को संभालने का,
मगर फिर भी यदि वो न सुधरे तो रूप धरे काल का।
हे दुष्टों के संहारक ,भक्तों के प्रतिपालक नारायण !
कलयुग में कब आओगे कल्की अवतार कर धारण।
आ जाओ प्रभु ! धरती पुनः पापियों से त्रस्त हो रही ,
इस बार अवतार लेने में क्या तुम्हे देरी नहीं हो रही ?
हम कली के सताए प्राणी पीड़ित है हमारी रक्षा करो ।
और फिर वही अपना सांवला सलोना मोहक रूप ,
के दर्शन करा कर निहाल करो।
तुम्हारी महान गाथा और गुणों का बखान कैसे करूं,
कलम मेरी असमर्थ है मेरे प्रभु ! तेरी महिमा कैसे लिखूं
मैं अनाड़ी ,मूर्ख और अयोग्य , मैं एक शून्य हूं ,
परंतु तुम कृपा करो ,अपना प्रेम दो ,मैं तुम्हारा अंश हूं।