मेरे पिता
कई रातों की नींदों को उन्हों ने भुलाया है।
बड़े प्यार से मुझे अपने गले से लगाया है।।
जब माँ ने थक कर हार मान लिया मुझ से।
तब काँधे से लगा कर उन्हों ने ही सुलाया है।।
कई बार भूखे रह गये बिना ऊफ तक किये।
पर मुझे उन्हों ने अक्सर भर पेट खिलाया है।।
जिल्लतें झेल झेल कर ख़ुद उदास पड़े रहते।
पर मसख़रा बन कर उन्हों ने मुझे हँसाया है।।
पूरी ज़िंदगी रहे वो ख़ुद अनपढ़ औऱ गँवार।
फिर भी बड़े प्यार से उन्हों ने मुझे पढ़ाया है।।
मेरी हर ख़्वाहिशों को पूरा करने के वास्ते।
पसीना हद से भी ज़्यादा उन्हों ने बहाया है।।
खड़ा हूँ आज जो फ़ख्र से सर को उठा कर।
मेरे पिता ने ही मुझे इस क़ाबिल बनाया है।।