मेरे पिता
मेरे पिता
नील गगन से विशाल, हिमालय जैसा भाल
सुमेरु कन्धे साधे वसुधा के जीवन की ताल
मेरे पिता….
संवेदनाओं को कहां कह पाते
गिरा पलक को अश्रु छिपाते
मेरे अश्रु पर उठा लेते आसमान
मैं सुता उनकी जैसे हो बिलाल
मेरे पिता
चौड़े कन्धे सुमेरु उठाते
लेकिन खुद घोड़ा बन जाते
अक्सर छोटे या बड़े होते
मेरे लिए जो लाए परिधान
मेरे पिता….
शिक्षा को प्रोत्साहित करते
केवल घर तक नहीं समेटते
लिखते मुझे लिखना सिखाते
कहते थामो समय कमान
मेरे पिता….
ईश्वर प्रेमी राष्ट्र के प्रति निष्ठावान
बन जाते अक्सर ही सर्वशक्तिमान
छोटी थी अबोध समझ सकी नहीं
ज्ञान उन्हीं का शब्द सुर पहचान
मेरे पिता….
ग्रामीण और अपराधी क्षेत्र से
मेरे लिए लड़ गए समाज से
दिया सदा मुझे समर्थन
उत्तम शिक्षा दी पाया मुकाम
मेरे पिता…..