“मेरे पापा “
संयम,समर्पण,पितृ स्नेह का मेरे पापा सम्पूर्ण आकाश थे,
माँ जो स्नेह की थी अविरल सरिता, पापा मेरे सागर थे।
अपने बच्चों के पिता संग वो अनुजों के पालक भी थे,
जीवन के आदर्श, हम भाई – बहिनों की वो हिम्मत थे।
संघर्षों की बहती बूंदों से, सींचते घर की हर खुशी थे,
स्वाभिमानी व्यक्तिव और बेहद सादगी पसंद भी थे।
बाहर से स्वभाव में लगते सख्त पर दिल के वो नर्म थे,
परिवार की हर उम्मीद,हिम्मत,वो ही अटूट विश्वास थे।
सबकी ख़्वाहिशों और पसंद की सदा रखते परवाह थे,
गिला यही रहा कि अपने लिये वो बेहद लापरवाह से थे।
हमारे सपनों को रंग भरने में ही रहते वो सदा तत्पर थे,
पापा जिम्मेदारियों से लदी गाड़ी के कुशल सारथी जो थे।
चुनौतियों में बनते सदा ही, हौसलों की मजबूत दीवार थे,
पापा मेरे,आप तो आशीर्वाद का एक विस्तृत आकाश थे।
स्वरचित एवं मौलिक
© ® उषा शर्मा
जामनगर (गुजरात)