मेरे जन्मदाता
मेरे जन्मदाता
क्या लिखूं मैं उनके बारे में, जो मेरे जन्मदाता थे,
एक पिता एक सखा से बढ़ कर वो मेरे निर्माता थे।
उनके बिन जीने की कल्पना भी न कर सकती थी मैं,
मेरे सबसे अज़ीज़, मेरे सबसे करीब
वो पिता थे मेरे , जिनसे बहुत प्यार करती थी मै।
उनकी एक एक बात को याद करूं तो रोना आता है,
ना जाने कैसा ये बंधन कैसा ये नाता है।
हँसमुख सा चेहरा था उनका, आंखों में थी गहराई,
विषम परिस्थिति में भी धीरज रखना,
ऎसी थी उनमें चतुराई।
अपनी चिंतायो को अपने होंठों की मुस्कान बनाते, मैने उन्हे देखा है।
हर परस्थिति में हिम्मत के साथ,
अकेले ही जूझते मैंने उन्हे देखा है।
बच्चो में वो बच्चे व बड़ों में वे बड़े बन जाते थे,
अपनी मिलानसरिता के कारण ही,
वे सर्वप्रिय कहलाते थे।
रात को जब भी बत्ती गुल हो जाती,
तो वो हम सब को पंखा झलते थे,
हमसब चैन की नींद सो सके,
इसलिए सारी रात वो जगते थे।
खुद जब भी कहीं जाते तो पैदल ही चल पड़ते थे,
पर जब हम सब भी साथ होते तो
हमे टैक्सी की सैर कराते थे।
अपने मां बाबूजी की सेवा में सदा वो तत्पर रहते थे,
उनकी हर छोटी बड़ी इच्छाओं का सदा वो सम्मान करते थे।
हरी नाम का जप प्रतिपल उनके मन में चलता रहता था ,
विश्वास का दीपक हमेशा उनके मनमंदिर में जलता रहता था ।
उनके गुणों का बखान करूं , ऐसी मेरे पास लेखनी नहीं,
आज वो हमारे बीच नहीं हैं पर फिर भी दिल से दूर नहीं।
ईश्वर की आभारी हूं मैं जो मुझे ऎसे पिता मिले,
उनको कभी भुला ना पाऊंगी मै,बस इतना ही चाहूंगी,
जब भी मुझे बेटी के रूप में जन्म मिले ,
मुझे फिर से वही पिता मिले____
मुझे हर बार वही पिता मिले।
– मधु मून्धरा मल्ल।