मेरे कलाधर
श्यामल शस्य भू नीला अम्बर , शोभित मध्य मेरे कलाधर
शास्वत सत्य डारि बाघम्बर, गुंजित बम-बम और हर-हर स्वर
शोभित मध्य मेरे कलाधर …………….
अजानुबाहु आशीष को देते, मन निर्मल पावन कर देते
समस्त व्याकुलता हर लेते, मंद मुस्कान धरे अधर पर
शोभित मध्य मेरे कलाधर …………….
आये कोई भी असुर,सुर, मुनि जन, बन जाते भोले औ साधारण
न जाने क्या जादू कर देते तब , गुम हो जाये देखे रूप मनहोर
शोभित मध्य मेरे कलाधर …………….
हे मम स्वामी अन्तर्यामी, प्रायः मनुष्य करता नादानी
सर्वग्य नाथ तुम सर्वव्यापी, किया दूर तम ज्ञान को देकर
शोभित मध्य मेरे कलाधर …………….
विनती मेरी श्री चरणों में , रह पाऊं सदा तेरी ही शरण में
भूल सकूँ न तुम्हें भूलकर, जीऊँ सदा तेरी ही बनकर
शोभित मध्य मेरे कलाधर …………….
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