मेरे ईश्वर तुम ही हो
सूरज,चाँद,सितारों वाला नीला अम्बर तुम ही हो
गहराई को स्वयं समेटे विस्तृत सागर तुम ही हो
मधु संचित करते रहते हो पुष्प हृदय में पहले तो
फिर उन पर मँडराने वाले श्यामल मधुकर तुम ही हो
बादल बीच कड़कती बिजली बोल रही है सदियों से
सुंदर गीत सजाने वाली सरगम का स्वर तुम ही हो
तुम ही भाव तुम्हीं रस बनकर निहित हुए हर पंक्ति में
कविता के हर शब्द में बैठे अक्षर अक्षर तुम ही हो
लोहे सा यूँ ही कबाड़ में पड़ा रहा मैं सदियों तक
छूकर स्वर्ण बनाने वाले पारस पत्थर तुम ही हो
ठोकर देकर राह दिखाई फिर जा बैठे मंदिर में
अब मैने पहचान लिया कि मेरे ईश्वर तुम ही हो