मेरे आँगन में इक लड़की
मेरे आँगन में इक लड़की चुपके चुपके आई है।
बादल बिजली पानी बरखा चंचल सी पुरवाई है।
चाँद के जैसा चेहरा उसका जुल्फें जैसे काली घटा,
अभी अभी तो जवां हुई है नई नई तरुणाई है।
आँखें उसकी हिरनी जैसी होंठ गुलाबी रंग के हैं,
हँसते हुए वह लगती जैसे दुल्हन नई शर्माई है।
सोने जैसा तन है उसका चांदी जैसे कपड़े हैं,
लगता जैसे आसमान से अभी उतर कर आई है।
छोड़ के सारे काम काज मन करता देखूँ जीभर के,
खड़ी हुई है आँगन मेरे कुछ सिमटी सकुचाई है।
-रमाकांत चौधरी
उत्तर प्रदेश ।