मेरे अल्फ़ाज़ पढ़ता कौन है
गढ़ते हैं बड़ी मुद्दतों से अल्फ़ाज़, मगर पढ़ता कौन है,
पढ़ी उसनेे एक नज़्म,उसकी तरह मुझे पढ़ता कौन है।
उन्होंने पढ़ी हमारी अल्फ़ाज़ को और दीवानी हो गई,
अब हमारी अल्फ़ाज़ को तुम्हारी तरह पढ़ता कौन है।
लिख दूं अगर ग़लत तो सभी को गलतियां दिख जाती
मेरी अल्फ़ाज़ में छुपे जज्बात आखिर देखता कौन है
छुपे थे सालों से जो राज,उसका आगाज होने वाला था,
इश्क़ की नगरी है जनाब यहां बेवजह रोकता कौन है
तुम्हारी बस एक बात से गंभीर हो जाता है “शिवा”,
आखिर यहां अल्फ़ाजों की गहराई में उतरता कौन है
© Abhishek Shrivastava “Shivaji”