मेरे अभिन्न मित्र
एक ऐसी शख्सियत ,
जो न कभी कोई शिकायत करती है ,
और न ही कोई कोई मांग करती है ।
मगर इनके पहलू में गर जाती हूं ,
तो मुझे अपने प्रेम बंधन से बांध देती है।
और बिना कुछ कहे यह जता देती है ,
” मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है ”
बस फिर जज्बातों की एक लय उठती है,
मन तरंगित हो उठता है ,
और जी में आता है सारी दुनिया और ,
दुनिया के कार्य व्यवहार छोड़ कर मैं ,
इनकी होकर रह जायूं।
और वो है मेरे बेजुबान साथी ,
मेरे हरे हरे ,रंग रंगीले ,खूबसूरत साथी ,
मेरे अभिन्न मित्र पेड़ पौधे ।