मेरी ज़िन्दगी पे जैसे बहार छा रही है….
मेरी ज़िन्दगी पे जैसे बहार छा रही है….
रूह मेरी में वो आके अपना हक़ जमा रही है…
पलकों के मेरे आंसू अब उसके हो रहे हैं…
बन मोतियों की माला गले उनके जा रही है….
कोई आये मुझे बताये ये मौसम क्यूँ है बदला….
खिली धूप में ये कैसी बरसात आ रही है…..
महबूब मेरा जैसे है चाँद सरीखा मुखड़ा…
मैं चकोर बन निहारूं जाँ में जाँ जो आ रही है…
बड़े से तिरछे नैनों में कजरारी धार पतली…..
जब भी देखें हैं वो मुझको लगे जान जा रही है…..
गालों का रंग गुलाबी होठों का है शराबी….
बस देख देख उनको मन में मस्ती छा रही है….
न ही नखरा न ही तेवर मुस्कान उसका जेवर….
दिल के तारों पे मेरे वो राग बसंत गा रही है…..
मेरी सांसें हैं थमी सी समाँ भी है ठिठका सा….
चन्दन जान मेरी ‘चन्दर’ को महका रही है……