जीवन चक्र
मेरी हुनर मेरी पहचान, को क्या समझेगा वो इंसान ।
कि जिसने दर्द ना झेला, वो करता है अपने पे गुमान ।।
बिना साथी का कोई साथ, नहीं बढ़ाता है कोई हाथ ।
जब लगता है कहीं कोई हाथ, तो चमक उठता है उसका माथ ।।
नजारे वो भी देखे हैं, नजारे हम भी देखे हैं ।
मिलती है उसे मंजिल, जो कोशिश यहाँ पे करते हैं ।।
अच्छे दिन नहीं आते, कुछ अच्छा करना पड़ता है ।
मुसीबतें दुर होती हैं, मगर उससे लड़ना पड़ता है ।।
जो लड़ना नहीं सीखा, उसे मिटना ही पड़ता है ।
भविष्य में अच्छाई की खातिर, थोड़ा कुछ त्यागना पड़ता है ।।
औरों के जीवन की खातिर, खुद को मिटाना भी पड़ता है ।
अंत सभी का होता है, अंत उसका भी होगा ।।
अंत तेरा भी होगा, अंत मेरा भी होगा ।
मगर इतिहास में एकदिन, मेरा ये नाम अमर होगा ।
ऐसे ही सोच के चलते, हम तो रोज जीते हैं ।
कभी खुशी का आँसू, तो कभी हम गम का पीते हैं ।।
उजाला होगा कब जीवन में, ये तो पता नहीं मुझको ।
पर हँसकर जमाने में, जीवन को जीना सीखा है ।।
आने जाने का क्रम, यहाँ पर चलता रहता है ।
इतिहास उसी का बनता है, जो बड़ा करके गुजरता है ।।
जन्म लेता जो इस धरती पर, उसे मरना ही पड़ता है ।
जीवन का ये जीवन चक्र, ऐसे ही चलता रहता है ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 28/05/2023
समय – 02 : 48 (रात्रि)