मेरी हर अध्याय तुमसे ही
मेरी हर अध्याय तुमसे ही
कर सम्मान जान अपनापन,
खोल बैठी जिंदगी की किताब।
ओपन होने लगे हर चैप्टर,
समझ आने लगी तुमको
मेरी हर अध्याय,,,,,,
हर कहानी और किस्से,
जीवंत लगने लगे तुमको।
कर सम्मान मान अपना,
खोल बैठी जिंदगी की किताब।
अब है पंछी एक ही घोसले के,
दाना चुगना साथ साथ।
एक डोरी से बंधे एहसास हमारा,
जीना मरना साथ साथ।
हम राह बन कर रहना अब तुम,
साथ निभाना हर पल हर वक्त
बीच मझधार छोड़ ना जाना,
साथ निभाना जीवन भर।
कर रसमें और कसमे पूरे,
साथ निभाना जीवन भर।
अपनी तिखी बातों से
मुझे ना पहनाना कोई जेवर।
रचनाकार
कृष्ण मानसी(MLM)
बिलासपुर, छत्तीसगढ़