“मेरी हमनवां”
“मेरी हमनवां”
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गहराइयों से दिल की तुम्हे बहुत चाहता हूं दिलबर,
तुम्हारी चाहत ही तो मेरे जीवन उद्देश्य अंतिम है।
तुम्हारे बिन जो अब तक की बसर ये ज़िंदगी मैंने,
तुम्हारे प्यार में अब खुशनुमा एहसास लगती है।
राह ए उल्फत में जबसे तुम्हारा साथ पाया है,
राह ए जिंदगी अब बहुत ही आसां लगती है।
जिंदगी महरूम थी मेरी महबूब से अब तलक
बयां ज़ज्बात दिल के मैं करता भी तो किससे।
जज्बात ए मोहब्बत को मैं अब रोक नही पाता,
तेरे प्यार में लिपटकर ज़बान पर आ ही जाते हैं।
जीवन में तुम्हारे अब कभी भी दुख नहीं होगा,
तुम्हारे आंसुओं को मैं जिंदगी अपनी बना लूंगा।
हज़ारों ख्वाहिशें अपनी मैं क्यूं ना वार दूं तुम पर,
चाहत तुम्हारी पाना ही मेरी जिंदगी का मकसद है।
साथ की खातिर मैं तेरे अब तक दर-बदर भटका,
मुकम्मल हो गया जीवन तेरे क़दमों की आहट से।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश