मेरी वफाओं का देकर सिला गया कोई ।
मेरी वफाओं का देकर सिला गया कोई ।
आतिश ए इश्क वफा से बुझा गया कोई ।
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वह जहर देता है मुझको दुआ भी देता है।
उम्मीदें उम्र दराज़ी जगा गया कोई।
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किसी की याद में खोए हुए थे हम भी तो।
नकाब यादों के आकर हटा गया कोई।
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खता जो होती तो हम भी कुबूल कर लेते।
बिना खता किए देकर सजा गया कोई।
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जिसे एहसास नहीं था मेरी मोहब्बत का।
हमारी मौत पर आंसू बहा गया कोई।
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जिसकी तकलीद किया करते थे मोहब्बत में।
छतों से प्यारे परिंदे उड़ा गया कोई।
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सगीर प्यार दोबारा न फिर करे कोई ।
कब्र पर मेरी, यह देकर सदा गया कोई।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच