” मेरी लेखनी “
हे लेखनी ! तेरे साथ से ही जीती हूं ,
सुबह – शाम तेरे सहारे लिखती हूं ।
अपने बातों का ताना-बाना बुनती हूं ,
तुझसे ही अपना हर राज़ खोलती हूं ।
लेख में दर्द तो कभी प्यार घोलती हूं ,
हृदय का भाव शब्दों में तौलती हूं ।
हर ख्वाब की माला शब्दों से पीरोती हूं ,
जज्बातों का व्यापार तेरे साथ करती हूं ।
तुझे अपने हृदय का दर्पण बनाती हूं ,
तेरे सहारे अपनी कल्पना से मिल आती हूं ।
ज्योति मेरा नाम है पर साहस तुझसे पाती हूं ,
तेरे सहारे ही रौशनी फैलाती हूं ।
हर शब्द का एक नया अर्थ समझाती हूं ,
तेरे होने से ही मैं कामयाब हो पाती हूं ।
तेरे होने से ही अपना एहसास जगाती हूं ,
हर पल को साल में लिखती जाती हूं ।
तेरे बिना ना होगा मेरा गुजारा यही सोच के घबराती हूं ,
तुझसे मेरा कोई स्वार्थ नहीं बस अपने विचार सब तक पहुंचाना चाहती हूं ।
इसलिए तुझे अपने जीवन का हथियार बनाती हूं ,
उस विधाता का वरदान समझ तुझे शिश नवाती हूं ।
? धन्यवाद ?