मेरी माँ
माँ की ममता का कोई मोल नहीं,
माँ जैसा कोई अनमोल नहीं ।
कभी सागर की गहराई सी,
कभी पर्वत की ऊँचाई सी।
कभी गंगा जैसी सुरसरिता ,
सब वेदों की है वो सहिंता।
ऐसी है वो मेरी माँ …..
जब आँच कोई मुझ पर आये ,
बन कर ढाल खडी हो जाये।
एक चोट अगर मुझ को लगती ,
मेरी पीड़ा में जाँ उसकी जलती।
अपनी ममता के आँचल में वो मुझे छुपाकर रखती है,
न नजर लगे मुझको जग की वो मुझे बचाकर रखती है।
ऐसी है वो मेरी माँ……