मेरी माँ
ओ मेरी माँ, तूँ हैं कहाँ, ढूँढता फिरूँ तुम्हे,यहां वहाँ
वहां यहां सारा जहाँ ,मिली नहीं कहीं, गया जहाँ जहाँ
वो दिन कितने अच्छे थे,सभी थे साथ-साथ आस-पास
तेरे आँचल की घनी छाँव ,फलते फूलते थे हमारे सांस
जिन्दगी गमसीन हो गई, जब से तूँ है नहीं हमारे यहांँ
वहांँ यहांँ सारा जहाँ, मिली नहीं कहीं, गया जहाँ जहाँ
दुलार भरी वो लोरियां, जो गोद में तेरी हमें सदा मिली
कभी नहीं चढी त्यौरियाँ,गलतियां हमारियां जब मिली
सब कुछ सहा कुछ न कहा, जब तक तुम रही यहाँ
वहांँ यहाँ सारा जहाँ, मिली नहीं कहीं, गया जहाँ जहाँ
खूब मौज थी हर रोज थी, माँ तेरे वात्सल्य दुलार में
बेपरवाह थे तेरी परवाह में,माँ तेरे बहुमूल्य लाड़ प्यार में अब वो मौज कहाँ इस जहाँ में तुम छोड़ गई ये जहाँ
वहांँ यहाँ सारा जहाँ, मिली नहीं कहीं, गया जहाँ जहाँ
सदा पिसते घिसते हुए सींचती रही कुटुम्ब कुटीर को
मन मार के, ख्वाब मार के संवारती रही घर द्वार को
खुद को भूल गई औरों की याद में जब थी यहाँ
वहांँ यहाँ सारा जहाँ, मिली नहीं कहीं, गया जहाँ जहाँ
माँ अजर है, माँ अमर है,अमूल्य है , रब्ब तुल्य है
जग वालों इसकी कदर करो यह धन बहुमूल्य है
अवसर न जाने देना चल बसी तो मिलती नहीं यहाँ
वहाँ यहाँ सारा जहाँ, मिली नहीं कहीं, गया जहाँ जहाँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत