मेरी माँ अनोखी माँ
होगी सब की माँ अच्छी,
पर मेरी माँँ सा कोई नहीं।
सोती थी वो गीले में,
सूखे में सुलाया था मुझको।
जब मैं भोजन करती तो,
पंखा झुलाया था मुझको। होगी….।
संग जगती थी वो रातों में,
जब पाठ पढ़ाया था मुझको।
अपने मुख से छीन कर,
हर चीज़ खिलाया था मुझको।होगी…..।
देकर के अनमोल सलाहें,
काबिल बनाया था मुझको।
उस दिन कितना रोई थी वो,
जब विदा कराया था मुझको। होगी…..।
माँ करती हूँ मैं याद बहुत,
आज तलक ना, भूली तुझको।
होगई थी पागल मैं उस दिन,
जब अर्थी पे सुलाया, था तुझको।
होगी सब की माँ अच्छी,
पर मेरी माँ सा कोई नहीं।
द्वारा रचित……. रजनीश गोयल
रोहिणी… दिल्ली