मेरी भटकती आत्मा को भी
मेरी भटकती आत्मा को भी करार आयेगा
जब परमात्मा खुद बड़कर उपहार लायेगा
दुःखो के बादल बरस रहें हम पर बरसों से
अब दुःख भुलाने को खुद जाम पिलायेगा
खामोश हो चली है जिंदगी मेरी बरसों से
क्या मौला तू मुझे अपना संगीत सुनायेगा
ना मचलता ना बदनाम होता तुझे पाने को
किसी राह चल कर क्या तू मेरे घर आयेगा
तुझे याद भी है मैं तेरे निंदक की जमात में
गुमसुम मत रहा कर क्या मुझे भी रुलाएगा
अशोक जिंदगी कुछ छोटी हो चली आजकल
मदहोश ज़माने को छोड़ तू दुनियां से जायेगा
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से