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16 Jan 2021 · 1 min read

मेरी भटकती आत्मा को भी

मेरी भटकती आत्मा को भी करार आयेगा
जब परमात्मा खुद बड़कर उपहार लायेगा

दुःखो के बादल बरस रहें हम पर बरसों से
अब दुःख भुलाने को खुद जाम पिलायेगा

खामोश हो चली है जिंदगी मेरी बरसों से
क्या मौला तू मुझे अपना संगीत सुनायेगा

ना मचलता ना बदनाम होता तुझे पाने को
किसी राह चल कर क्या तू मेरे घर आयेगा

तुझे याद भी है मैं तेरे निंदक की जमात में
गुमसुम मत रहा कर क्या मुझे भी रुलाएगा

अशोक जिंदगी कुछ छोटी हो चली आजकल
मदहोश ज़माने को छोड़ तू दुनियां से जायेगा

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

1 Like · 227 Views
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