मेरी फितरत है, तुम्हें सजाने की
मेरी फितरत है, तुम्हें सजाने की,
तेरी फितरत है, मुझे मिटाने की।
सारा जीवन, तुम पर कुर्बान किया।
जो भी था पास मेरे,सब तेरे नाम किया।।
मैंने तुमको, सदा बहारें दीं।
सारी दुनिया को, जिंदगी दे दी।
खुद सहता रहा, बारिश ठंड और दुपहरी को
फल फूल छांव, तेरी सांसें दे दीं।
फिर क्यों तुमने, मुझे ही मार दिया।
बड़ी बेदर्दी से, मुझे काट दिया।।
तुमको चाहा, तुम पर कुर्बान हुआ।
जाने किस जुर्म की, सज़ा दे दी।
मैंने तुमको सदा, महफूज रखा,
तुम्हारे नाम की, जिंदगी सारी।
कितने अहसान फरामोश हो तुम,
बे बजह क्यों?तुमने चला दी आरी।।
जाते-जाते एक बात, तुमसे कहता हूं
अंतिम चेतावनी, तुमको देता हूं।
फितरत तेरी,बदली न अगर।
तुम भी न रह पाओगे, मेरे बगैर।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी