मेरी फितरत तो देख
मैं लड़खड़ा के यूँ चलता हूँ मेरी किस्मत ना देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ मेरी फितरत तो देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ…………….
जीवन के इन रास्तों में,डग-डग पर ही मुसीबतें हैं
हँस-हँस के गुजरता हूँ अरे मेरी हिम्मत तो देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ……………..
किससे कहूँ मैं इस दिल की सुनता कहाँ है कोई
शब्दों को निगलता हूँ अरे मेरी हसरत तो देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ……………..
जो कुछ दिया खुदा ने मैं उस में ही खुश रहता हूँ
शिकवा नहीं करता हूँ अरे मेरी नियत तो देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ………………
अपनों ने तन्हाँ छोड़ा है कभी दिल किसी ने तोड़ा
फिर भी न बिखरता हूँ अरे मेरी ताकत तो देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ………………
कहता रहे जमाना अब जिसको है जो भी कहना
V9द दिल की करता हूँ अरे मेरी आदत तो देख
मैं गिर-गिर के सम्भलता हूँ……………….
स्वरचित
( विनोद चौहान )