मेरी प्रेम गाथा भाग 11
प्रेम कहानी
भाग 11
परी और मेरी बॉर्ड की परीक्षाएं हो चुकी थी ,मित्र परिणाम शेष था।मैं अपने प्रिय नवोदय को छोड़ कर आ चुका था और परी वहीं पर थी।गर्मियों की छुट्टियों मे उसका आने का इंतजार कर रहा था।ग्रीष्मकालीन अवकाश में परी आखिरकार घर आ गई थी और इसी बीच मैने लखनऊ म्यूजिक कॉलेज आवेदन की जानकारी प्राप्त कर अपना संगीत स्नातक में आवेदन जमा करवा दिया था।
परी ने घर पहुंचते ही अपने आने की जानकारी कॉल करके बता दिया था और रात को विस्तार से बात करने की बात कही थी। रात में अक्सर उसकु कॉल आती थी और ढ़ेर सारी प्रेमी परिंदों की प्रेम की बाते होती थी।मेरा सुनहरा समय चल रहा था। उसके पापा जब घर पर नहीं होते तो दिन में भी बात हो जाती थी और साथ में वटस एप और फेसबुक पर चैटिंग होती रहती थी।
मैंने परी को यह भी बता दिया था कि मैंनें म्यूजिक कॉलेज में आवेदन कर दिया था और साक्षात्कार के लिए अभी बुलावा नहीं आया था। परी ने इसके बारे विस्तार से पूछा क्योंकि उसकी भी दिली इच्छा थी कि वह भी बारहवीं पास के बाद म्यूजिक कॉलेज में दाखिला लेगी।ग्रीष्मावकाश अवकाश परी के सानिध्य में बहुत अच्छी प्रतीत हो रही थी।दिल की धडकनें तेज हो रहू थी क्योंकि छुट्टियां समाप्ति की ओर थी और हमारी बॉर्ड की परीक्षाओं का परिणाम भी आने वाला था।
इसी दौरान मै लखनऊ इंटरव्यू के लिए चला गया और साक्षात्कार से पूर्व परी से बात हुई ंर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उसने उसके सफलता के लिए पूजा की थी।
पवन पुत्र बजरंग बली हनुमान जी की कृपा से साक्षात्कार बहुत अच्छा हो गया था और इसी बीच दसवी का परिणाम आ गया और फरी से फहले ही मैने पता करवा कर परी को दसवीं कक्षा में अच्छे अंकों के साथ उतीर्ण कर ली थी।
कुछ दिनों बाद मेरे परिणाम का पिटारा भी खुल गया और डरते डरते देखते हुए पाया कि मैं एक विषय में रह गया था जिसका परीक्षा मुझे दोबारा देनी थी। मैं थोड़ा निराश हो गया था।परी एवं अन्य सभी को मैंने झूठ बोल दिया था कि मैंने अभी तक परीक्षा परिणाम देखा नहीं है।शाम को देखूंगा क्योंकि मैं अभी कॉलेज में था।
शाम को घर आने पर परी को बताया कि मैं जक पेपर में रह गयि था और परी ने मेरी हौंसला अफजाई करते हुए कहा कि कोई बात नहीं ,आप मेहनत करो .।।हो जाओगे…।। पास…… । माता पिता को भी मेरी तरफ से निराशा हाथ लगी थी।
पूरा एक सप्ताह मैं घर नहीं आया और सोचा कि कॉलेज का परिणाम आने फर घर चला जाऊँ। उसके बाद म्यूजिक कॉलेज का परिणाम आ गया और जिसमें 199 क्रमांक पर मेरा नाम था और देखकर बहुत ज्यादा खुशी हुई और घर आया और मुहल्ले के सभी घरों में मिठाई बाँट दी और कहा कि मेरि लखनऊ म्यूजिक कॉलेज में संगीत स्नातक में दाखिला हो गया ।किसी ने बारहवीं के परिणाम के बारे पूछा ही नही और मेरी ईज्जत ढ़की की ढ़की रह गई थी, क्योंकि योजनाकार तो मैं आरम्भ से ही था।
सभी मेरी तारीफ करने लगे। और म्यूजिक इंडस्ट्री एसी इंडस्ट्री थी जहां पर पढ़ाई की वैल्यू तो है ,पर डिग्री की नहीं ।मेरी यह धारणा बन चुकी थी जो शायद वह गलत थी।
शाम को परी की कॉल अाई जो बहुत ज्यादा मायूस थी। मैंने परी को समझाया कि वहाँ नवोदय में केवल तुम्हारे लिए रुका था और मैंने तुम्हे पा गया और रही बात मेरे रिज़ल्ट की तो मैंने पूरा साल किताब ही नहीं खोली,परिणाम तो ऐसा आना ही था,शुक्र है फेल नहीं हुआ….। परी ने भी मेरी बातों को सच मान लिया था और यह सच्चाई भी थी…।।
छुट्टियां भी समाप्त होने वाली थी और परी ने मुझे समझाया आप परेशान मत होना ।वह जब भी घर आएगी तो तभी आपसे बात होगी। बस केवल दो साल इंतजार कीजिएगा। फिर वह भी लखनऊ म्यूजिक कॉलेज आ जाऊंगी।
छुट्टियां समाप्त हो गई और परी भी अपने स्कूल नवोदय में चली गई और मै अपने म्यूजिक कॉलेज लखनऊ चला गया।
शनिवार को परी की कॉल आई और वह बोली कि संदीप वह अपना स्थानांतरण करवा रही थी ,क्योंकि वह ऑर्ट साइड लेकर विद्यालय बदलना चाहती थी क्योंकि उसका मेरे बिना वहाँ मन नही लग रहा था।और उसका स्थानांतरण दूसरे नवोदय विद्यालय में हो गया था जहाँ पर ऑर्ट साइड थी।
अब जब कभी स्कूल में छुट्टियां होती तो परी घर आते ही कॉल करती और दो दिन बाते होती और तीसरे दिन मै भी लखनऊ से घर आ जाता था। परी से सारी रात बात होती रहती थी।हम दोनों आशिकुके गहरे नशे में चूर थे और अपनी सुध बुध खो रहे थे ,क्योंकि दोनों का यौवन भी चरम सीमा पर था।हो भी क्यों ना भाई ….दोनो पर चढती हुई जवानी का नशा छाया हुआ था,जिसका असर दिखाई दे रहा था।
सर्दियों की छुट्टियों में गांव में बहुत बड़ा महोत्सव होता था जोकि एक पूरे मेले की तरह भरता था। इस महोत्सव में मैं कई बार अपनी परफॉर्मेंस भी दे चुका था। परी ने कॉल किया और बताया कि वह अपने परिवार सहित महोत्सव में आएगी।पापा और मम्मी साथ नही आएंगें।वह बड़ी वाली दीदी दिव्या के साथ आ रही थी।मुझे भी बुला लिया और मैं भी बन संवर कर आ गया और परी क़ो महोत्सव में ढूंढते लगा। मैने परी और उसकी बहन के साथ खूब मौज मस्ती भी की और दीदी ने हम दोनों को झूला झूलने की अनुमति दे दी। उसके बाद मैंने और परी ने एक साथ मेला घूमा और बड़े वाले झूले पर बैठ गए, क्योंकि हम दोनो का पहली बार था,इसलिये झूला झूलते समय हम डर कर परस्पर सट कर चिपक गए और मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।उसके स्पर्श से
एखुअलग ही खूश्बू आ रही थी जो मुझे बहुत भा रही थी और परमानंद की अनुभूति हो रही थी । झूला जैसे ही ऊपर से नीचे आता,हमें ऐसा लगता जैसे कोई आसमान से नीचे फैंक रहा हो और हम दोनों आपस में डर की वजह से एक दूसरे को कस कर पकड़ लेते ।इतने आनन्ददायक क्षण थे कि शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता।हम चाहते थे कि बस यह स्वर्णिम समय यही रूक जाए।हम दोनों ने अगले महोत्सव में मिलने का वादा कर एक दूसरे से विदाई ली।
रात को परी की कॉल अाई और मेले में मिली मस्ती को लेकर बहुत सारी मस्ती भरी बातें हुई और हमें शायद वार्तालाप में भावुक हो कर प्रेम के भावों में बहने लगे जो कि सचमुच बहुत ही आनन्दित करने वाला था और इस प्रकार परी की सर्दकालीन अवकाश समाप्त हो गए और परी अपने विद्यालय चली गई और मैं लखनऊ अपने संगीत महाविद्यालय में…..।
कहानी जारी…….
सुखविंद्र सिंह मनसीरत