मेरी प्यारी दादी माँ
आया एक भयानक सुबह,
जिसने छिन लिया मुझसे मेरा सबकुछ ।
नहीं चाहिए थी मुझे उसके सिवा कुछ ।
मेरे लिया वही थी मेरा सब कुछ |
अब तो जहाँ जाऊँ उनके अलावा,
नजर ही नहीं आता मुझे कुछ।
हालत ही ऐसी है मेरी अब कि,
उनकी यादें ही जीने के लिए है सब कुछ।
उनकी यादें नहीं गई है अब तक ,
उनकी कहानियाँ अब भी मुझे सिखाती है बहुत कुछ।
मैं सोचती हूँ गलती क्या थी मेरी,
जो छीन गया मेरा सब कुछ ।
सुबह होते ही जिनका चेहरा देखती थी मैं,
अब उन्ही आँखों को मायुसी के सिवा मिलता नहीं कुछ ।
नहीं था इस मतलबी दुनिया मे तेरे सिवा कुछ,
तुम्ही ने दुनिया के बारे में बताया सबकुछ।
हे दादी ! काश कभी आप फिर से आकर
दुनिया के दस्तुर के बारे में बता जाएँ और कुछ ।
आया एक भयानक सुबह ,
जिसने छीन लिया मुझसे मेरा सबकुछ।
यह कविता मेरी प्यारी दादी माँ को समर्पित है।