मेरी पुरानी कविता
मेरी पुरानी कविता,क्या क्या दिल पे बीता
गहरे पानी में डूबीं ,ख्यालों की वो सरिता।
ज़ेहन में सब , उमड़ते-घुमड़ते से एहसास
समझा गये मुझे ,कितने हो दिल के पास।
इस कविता में भरा है विरह का इक रंग
बिछुड़े जब तुम ,हो गया दर्द का संग।
हर दर्द,हर ग़म को समेटे हुए है ये कविता
इन को समेटती ये कब बन गई परिणीता
खुश रहने के लिए ,किये मैंने सब यत्न
कविताओं के जरिए ही ,मिला प्रेम रत्न।
सुरिंदर कौर