मेरी पत्नी
मेरी पत्नी आज-कल बहुत पढ़ती है
मन ही मन बहुत कुछ,कुछ गढ़ती है
नाख़ुश जो आजकल मुझसे रहती है
कविता मेरी ही रटरट बहुत पढ़ती है।।
गढ़ती है मन में बहुत से विचार चाहे अनचाहे
लड़ती है मुझसे प्यार करती है चाहे अनचाहे
निगाहें तरेरकर जो मेरी ही कविता पढ़ती है
वो प्यार तुमसे ही तो करती है चाहे अनचाहे।।
मेरी पत्नी आज-कल बहुत पढ़ती है
मन में विचार बारबार बहुत गढ़ती है
सुनाती मेरी ही कविता मुझको यार
कविता मेरी भाव अपने ही गढ़ती है।।
मैं , कवि हूं या नहीं हूं संशय है यारो
कल नहीं आजकल की पारो है यारो
मैं देवदास नहीं जो पीता हो दिनरात
कामिनी हरपल रहती मेरे पास यारो।।
मेरी पत्नी आज-कल बहुत पढ़ती है
कविता-मर्म छूने शब्दकोश पढ़ती है
कहती है कर्म- मर्म मिलता है उससे
सुना सुना दोष मेरे सिर जो मढ़ती है।।
पर दोष नहीं उसका परदोष जो मढ़ती है
शब्द के अर्थ अपने ही मनमर्जी गढ़ती है
सारे शब्दकोश खंगाल डाले इस उघेड़बुन
मेरी पत्नी आजकल बहुत कुछ पढ़ती है।।
?मधुप बैरागी