” मेरी तरह “
तब मैं मान लूंगी आसमान को….
तब मैं जान लूंगी वसुंधरा को….
आसमां से जाकर कहो कि
कभी मेरी तरह भी रो कर दिखायें….
जिस तरह पी लेती हूँ मैं पलकों से अपने आँसू,
जमीं पर पड़े अपने आँसुओं को पी कर दिखायें….
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मैं जी लूंगी जिदंगी को….
मैं सी लूंगी अपनी जुबान को….
जिन्दगी से कहों की
कभी मेरी तरह जी कर दिखायें….
किसी एक को दिल में रखकर
हज़ार बार मर कर दिखायें….
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मैं भी अपने मन के शोर को आजाद कर दूंगी….
भीतर खामोश है जो शब्द उन्हें आबाद कर दूंगी….
क्या समंदर तुमनें अपनी गहराई
कभी माप कर देखी है….
अच्छा मुझे बताओं तारों की गणना
तुमनें कभी करकर देखी है….
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हम भी उदासी को दासी बना लेगें….
बदकिस्मती को ही किस्मत बना लेगें….
क्या तुमनें पतझड़ में पेड़ों से
पत्ते बिलखते हुएं नही देखें….
रेगिस्तान से मुसाफ़िर के पैरों के
निशान रूठते हुएं नही देखें….
लेखिका:- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना
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