मेरी जिन्दगी की कैताब
मेरी जिन्दगी की किताब को गौर से पढ़िए
करीबी सा लगूं मुझे दिल खोल के पढ़िए।
अरसे से पड़ी बन्द किताब के पीले पन्नों में
सूखे हुए फूलों में यादों की महक को पढ़िए।
छटपटाता दर्द से एक बदहाल परिन्दा हूँ मैं
अपने सीने से लगाकर मेरे जख़्म को पढ़िए।
बेज़ुबान हरफ़ों की एक बेआवाज़ गज़ल हूँ
रात की तनहाई में अपनी आवाज़ में पढ़िए।
ताबूतों में दफ़न कई राज बहकती सांसों के
बेवक्त अपने हंसी चेहरे के नकाब में पढ़िए।
कैद हूँ मुद्दत से मैं आपके वादों के भरम में
तफ़सील अपने वादों की फेहरिस्त में पढ़िए।
आपसे न कोई शिकवा न शिकायत है मुझे
आप खुद अपना सिला अपने आईन में पढ़िए।
तलबगार हूँ मैं आपके इज़हारे मोहब्बत का
अपना हाल अपने दिल की किताब में पढ़िए।