मेरी जांँ अब तो ज़मीं पर भी उतर कर देखो।
आंँख के रस्ते कभी दिल से गुज़र कर देखो।
मेरे आंँखों में है जमता सा समंदर देखो ।
पाक हो जाओगे जैसे कि पानी गंगा का
हांँ मगर तुम मेरे आंँखों से छलककर देखो।
हमने तुमको तो फ़लक पर भी बिठा कर देखा
मेरी जांँ अब तो ज़मीं पर भी उतर कर देखो।
जो न मुमकिन था तेरे इश्क़ में पिघला कैसे।
फूल के वार से तड़पा है ये पत्थर देखो।
इश्क़ में मुझको इस दफ़ा कमाल करना था
कितना टूटा तेरे उल्फत में सितमगर देखो।
हमने उल्फत में सजा पाई है भुगतने दो।
मैं दिखूं जब भी तुम्हें मुझको सहम कर देखो।
देखकर पाना है सुँकूँ तो समझ लो “दीपक”
बाग़ ये कांटे भरी है तो संँभल कर देखो।
©®दीपक झा “रुद्रा”