मेरी कोई जायदाद नहीं
मेरी कोई जायदाद नहीं
एक दिन मैं तन्हा बैठा था अपने मकान में,
चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में.
पल भर में आती .. पल भर में जाती थी वो,
छोटे-छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो.
बना रही थी वो अपना घर .. एक न्यारा,
एक तिनका ही था, उसकी ईंट और गारा.
कड़ी मेहनत से घर जब उसका बन गया,
आए खुशी के आँसू और सीना तन गया.
कुछ दिन बाद मौसम बदला और …
हवा के झोंके आने लगे,
नन्हे से प्यारे-प्यारे दो बच्चे,
घोंसले में चहचहाने लगे.
पाल पोसकर चिड़िया …
कर रही थी बड़ा उन्हे,
पंख निकल रहे थे दोनों के …
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे.
इच्छुक है हर इंसान …
कोई जमीन आसमान के लिए,
कोशिश थी जारी उन दोनों की …
एक ऊँची उड़ान के लिए.
देखता था मैं हर रोज उन्हें …
जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए ,
पंख निकलने ही दोनों बच्चे …
माँ को छोड़ अकेला … उड़ गए.
चिड़िया से पूछा मैंने ~
तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए ?
तू तो थी माँ उनकी …
फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए ?
इंसान के बच्चे …
अपने माँ-बाप का घर नहीं छोड़ते,
जब तक मिले न हिस्सा अपना …
रिश्ता नहीं तोड़ते.
चिड़िया बोली ~
परिन्दे और इंसान के बच्चे में …
यही तो फर्क है !
आज के इंसान का बच्चा …
मोह-माया के दरिया में गर्क है !
इंसान का बच्चा .. पैदा होते ही …
हर शह पर अपना हक जमाता है.
न मिलने पर वो माँ-बाप को …
कोर्ट कचहरी तक ले जाता है.
मैंने बच्चों को जन्म दिया , पर ..
करता कोई मुझे याद नहीं !
मेरे बच्चे .. क्यों रहेंगे साथ मेरे ,
क्योंकि … मेरी कोई जायदाद नहीं !