मेरी कविता
आपसे जुड़े अल्फ़ाज़ों कि हैं……
नादानी,आपसे मिली उम्मीदों कि जो हैं……
कहानी, इधर-उधर से लेकर मिला जो हमें बहुत सारा प्रेम हैं……
कुछ दोस्तों का कुछ अपनों का पर किया कितना सारा काम हमनें उन लोगों का, कभी नहीं देखा हैं…..
उन्होंने न कभी याद किया हैं….
उन्होंने, वक्त कि सरहदों पर मिला जब सब कुछ तो बस बेनाम किया हैं…..
आज उनकी बदौलत में जिंदगी में अपनी राह बना रहा हैं….
नग्मों से नग्में बन रहें, अल्फाज़ के भवँर में फँस गये हैं….
बेबुनियादी से देख जिसें, वो भवँर भी बावरा हो चला हैं….
हम फिरते थे, गलियारों में करते थे,झगड़ा सबसे, पर वो गलियारा भी गुमसुम सा गुपचुप बैठा हैं…..
यादों के भवँर में जा कर छुप गया हैं…..
याद पुरानी बचपन कि, जब-जब झगड़ा करते थे,
प्रेम के बहाने दोस्तों को मार-मार कर घर में छुप जाते थे….
सारे अल्फ़ाज़ बिखरते थे, गलियारों में काँच खिड़की पर बने हुये, बॉल फेंक कर तोड़ा करते थे, छुप छुप कर ऐसे घर बैठ जाते थे,आते थे वो भी लड़ने, जब मज़ा बहुत आता था,देख कर उन्हें हम घर से भाग जाया करते थे,
वो सलवटें वो बेवकूफ़ी वो नादानी अब कहाँ हैं…..!