मेरी कविता …
मेरी कविता..
यूँ ही नहीं लिख दिए शब्द दो चार
मेरी कविता नहीं शब्दों का व्यापार
शब्दों को भावनाओं में है घोला
पंक्तियों में निज हृदय को टटोला
लय में पिरोए कुछ असल अनुभव
अनुभूतियों को दिए स्वर अभिनव
उर की पीड़ा से किया अक्षर श्रिंगार
स्वरचित शब्दों का यह अद्भुत संसार
मथी इनमें वेदनाएँ अवसादों के क्षण
दोहों में बुने व्याकुल जीवन के कण
छंदों में बुनी जगती की ज्वाला
सींचे गीत ले अश्रु का प्याला
मुक्तक बने मादक प्रणय संवाद
उड़ेल डाला उन्में यौवन का उन्माद
काव्य नहीं ये कल्पना की उड़ान
मृदु सपनों की यथार्थ से पहचान
मेरे दिल से दिलों को छूने हेतु
बाँधे मैंने स्निग्ध कविता के सेतु
रेखा