मेरी कविता
किस तरह से आगाज़ करूँ….
मैं तुम्हें आज़ाद करूँ….
मैं बंद पिंजरें की कैद,
अब अब तुम्हें आज़ाद करूँ….
तेरा जो अंजाम नहीं,
उसे मैं सरे आम करूँ….
किस तरह से आगाज़ करूँ….
मैं तुम्हें आज़ाद करूँ….
कर्म करूँ,अच्छा करूँ,
मिलकर सबको साथ लेकर जीवन के हर मार्ग में,
मैं अब तुम्हें आज़ाद करूँ।
हार्दिक महाजन