*मेरी कविता की कहानी*
मेरी कविता की कहानी
बिखरे हुए मन को,
कविता में संजोकर
बिखरे तारों को
एक में बांधकर
निखरे हुनर को,
शब्दों में पिरोती हूं।
जाने अनजाने में कहीं बातों को,
हंस कर सह जाती हूं।
शुन्य से हृदय को मेरे
संगीत से भर जाती हूं।
मन की आशाओं को
पंख लगा जाती हूं।
अस्तित्व को खोने के डर से
सहम सी जाती हूं।
घायल परिंदों की तरह
थोड़ा हौसला भर लेती हूं।
कागज के कोरे पन्नों पर
शब्दों के नाव को चलाती हूं।
हर जख्मों को आंसुओं से
भीगने से बचाती हूं।
घायल दिल के हर शब्दों को
कविता बना बहाती हूं।
कविता मरहम बनते हैं
और मेरी मुस्कान बनकर
मुख से झलकते हैं।
मेरे जीने की वजह और
मेरी जान है ये कविताएं।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
(मंजू लता मेरसा)
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)