मेरी कविताएं पढ़ लेना
फिक्र सताए हो अशांत मन,
अपने थोड़े पल कढ़ लेना।
जब सुकून की ख़्वाहिश हो तब,
मेरी कविताएं पढ़ लेना।
गीत में मेरे राग मिलेगा,
थोड़ा सा अनुराग मिलेगा।
कुछ श्रृंगार व हंसी ठिठोली,
कहीं कहीं बैरागी बोली।
राजनीति से भी सन्ने हैं,
व्यंग कटाक्ष के कुछ पन्ने हैं।
कहीं रौद्र करुणा पीड़ा है,
कहीं वीर पौरुष क्रीड़ा है।
कुछ कविता में आह मिलेगी,
कुछ में कहीं कराह मिलेगी।
कोई किरदार कहीं मुरझाया,
विरही नयन कहीं दर्शाया।
भोले भाव भी गाया मैंने,
लोरी कहीं सुनाया मैने।
कभी पिता के चरण छुआ तो,
मां को शीश नवाया मैंने।
राम कथा भी थोड़ी थोड़ी,
माधव को कर जोड़ी जोड़ी।
देवी मां को मनाया बढ़कर,
शिव स्तोत्र भी गाया गढ़कर।
सतगुर पर तो वारी जाऊं,
शुक्र करूं बलिहारी जाऊं।
हरि अनन्त त्यों सतगुर वैसे,
उनकी महिमा गाऊँ कैसे।
गुरु की शरण में जब से आया,
न कह सकूं है कितना पाया।
मेरी औकात से कई गुना है,
दिन दिन बढ़कर होत दुना है।
इसके आगे कुछ नहीं कहना,
गुरु दर दया में निशदिन रहना।
होता धनी जब मिलती दीद,
गुरु साहब मैं सदा मुरीद।
स्वर व्यंजन के इस उपवन से,
जो मन भाये वो कढ़ लेना।
जब सुकून की ख़्वाहिश हो तब,
मेरी कविताएं पढ़ लेना।