मेरी कलम
क्या करूँ मेरी कलम गर प्यार लिखती है
इस बुढ़ापे में अगर श्रृंगार लिखती है।
है बहुत ही खूबसूरत मेरी महबूबा।
आइने की ही तरह दीदार लिखती है।।
मेरे गीतों पर वो नाचे जब मयूरी सी।
रेशमी पाजेब की झन्कार लिखती है।।
राज कोई भी छुपाना है नहीं मुमकिन।
हाल ए दिल मेरा सनम हर बार लिखती है।।
अब नहीं लगता मेरा मन दुनिया दारी में।
खूबसूरत सपनों का संसार लिखती है।।
एक दूजे के लिये हम आये धरती पर ।
हमको राधा कृष्ण सा अवतार लिखती है।।
बन गया चाहत में उसकी मैं भी कवि यारों।
ज्योति का दिल से सदा आभार लिखती है।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव