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14 Jun 2021 · 1 min read

– मेरी कलम और डायरी

शादी के बाद
मेरी जिम्मेदारी बढ़ी
कलम और डायरी
उठाकर रखनी पड़ी
वक्त की मेरे पास कमी
मैं कुछ ना लिख सकी
एक दिन मुझे सुनाई दी
मेरी कलम की सिसकी
डायरी कोने में उदास रखी
सिसकी में आवाज थी कलम की,डायरी की
कुछ लिखो हमारी धरा पर
अपने विचारों की अभिव्यक्ति
अपने भावों की कुछ पंक्ति
गहरी व्यथा में कलम भी मुरझी,
डायरी को भी बहुत चोट लगी,
साथ में स्याही न जाने कब से सूखी पड़ी,
उन दोनों की बात मेरे कानों ने सुनी,
धीरे-धीरे समय गुजरा
जिम्मेदारी का कुछ बोझ उतरा,
मैंने अपना कवि अस्तित्व फिर से संवारा,
कलम ,स्याही न डायरी को निकाला,
दिल से लगाया, होंठों से चूमा,
मान-सम्मान से माथे से ‘सीमा’लगाया,
अपनी कविता की पंक्तियों से उनको सजाया।

– सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 623 Views
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