मेरी इच्छा
उग आए चंद्र, खिल जाए छटा
खो जाए तिमिर का यह कोहरा
मिट जाए व्यथा , संगीत बने
हो जाये ह्रदय का भार वृथा।
नव दीप जले , नव आस बने
रातों में अरुणाई उपजे
हों खिले कमल से सब चेहरे
सुरभित हो कण्ठा हार सजे।
अंतर निलय सकुचाया सा
चमके जैसे शत शत दर्पण
थका क्लांत सा जन मानस
कर दे दुख को तेरे अर्पण।
प्रतिवाद नहीं सम्वाद बढ़े
पनपे उर में मैत्रीभाव
निर्मल प्रशांत सा जीवन हो
नहीं हो उसमे कोई अभाव।
विपिन