मेरी अभिलाषा
मेरी अभिलाषा
बनकर मैं पेड़ हमेशा, औरों के काम आऊं
सुख-दुख और धूप -छाया में, मैं सबका साथ निभाऊं
सीख जो बुजुर्गोंसे पाई, सबको मैं बताऊं
अपने जीवन का हर एक पल, सब पर न्योछावर कर जाऊं।
देखकर छाया पंथियों को, शीतल हवा चलाऊं
देखे जो मेरे पके फलों को, उनका जी ललचाऊं
हाथ न पहुंचे मुझ तक जो, पत्थर तक खा जाऊं
लुटा कर अपने मीठे फलों को, मन ही मन मुस्काऊं।
पत्तों को मेरे पशु जो खाए, उनकी भूख मिटाऊं
टहनियों पर हो पंछी बसेरा, कोटरों में जीव बिठाऊं
हर जीवो के काम में आकर, बहुत-बहुत इतराऊं
इस धरा पर बोझ न बनकर, जीवन सफल बनाऊं।
पालना बनकर झुलाऊं मैं, चैन की नींद सुलाऊं
बनकर इंधन भूख मिटाऊं, सर्दी को दूर भगाऊं
कोयला बन कर राख बनु मैं, बर्तनों को चमकाऊं
अंत समय मानव के संग, चिता बन जल जाऊं।
कभी खिलौना बन कर मैं, कभी पलंग बन जाऊं
कभी दातुन बनकर में, मुख की दुर्गंध मिटाऊं
कभी औषधि बनकर में, व्याधि सब हर जाऊं
मेरा यह अंग अंग काम जो आए, सब पर मर मिट जाऊं।
ललिता कश्यप गांव सायर
जिला बिलासपुर हि० प्र०