मेरा सोमवार
पप्पू भैया, पप्पू भैया
बचा ला हमके आवा ,
कार से हमके दाब के
ऊ निकल गइल देखा।
सुबह की सैर से वापसी
मंदिर के सामने से था
कातर आवाज सुन मैं
सहसा ठिठक गया था।
अर्द्धविक्षिप्त वह सख्स
सैर में नित्य ही दीखता था,
उसके मुहं से अपना नाम
सुन मैं भी ठिठक गया था।
ठीक मंदिर के सामने
ही वह औंधे पड़ा था,
दर्शनार्थी आ जा रहे थे
पर किसे कहाँ फरक था।
करीब जाकर जब देखा
तो तन मेरा सिहर गया,
कई जगह से कट कर
रक्त तेजी से रिस रहा था।
मुझे भी आज जल्दी थी
नहाकर मंदिर जाना था ,
अचानक से मैंने अपना
फैसला बदल लिया था।
एक बोतल पानी बिस्कुट
के लिए तेजी से घर आया,
डेटोल पट्टी मलहम और
कुछ दवाइयां लेकर भागा।
मंदिर को तैयार भार्या
अभी कुछ समझ पाती,
बाद में बताने को कह
मैंने उनसे भी विदा ली।
जाकर उस सख्स के
घाव को डेटोल से धोया,
बिस्कुट पानी खिला कर
पट्टी बांध दवा खिलाया।
करते कराते नौ बज गए
घर आकर सुकून मिला,
निर्मेष मुझे लगा कि मेरा
ॐ नमः शिवाय हो गया।
निर्मेष