-मेरा शौक, मेरी खुशियां
मुझे सिलाई मशीन से है बहुत प्यार,
वक्त मिलता तो मैं करती रहती कुछ नए आविष्कार,
होते हैं पुराने लिबास हमारे यादों की झुरमुट के प्रकार,
वैसे ही पुरानी साड़ी पुरानी होती है,, नहीं होती बेकार,
दे देती हूं मैं उनको अपने हुनर से नया आकार,
हमारी दादी -नानी भी रखती थीअपने पुराने वसन सार संभाल,
पहले मैंने पुरानी साड़ी में से एक सुंदर पोशाक बनाई थी,
सुंदर तरीके से सजाई ,सबको बहुत को बहुत पसंद आई थी,
एक दिन देख मुस्कुरा कर बोली मेरी बहु रानी…..
चाची मां !!मुझे भी है पुरानी साड़ी में से सुंदर पोशाक सिलवानी
मेरे मन को बहुत सुहाई उसकी वो स्नेह-से भरी वाणी
फिर !!
शौक था मुझे भी कुछ करने को नया लगाई अपनी कारस्तानी,
अलमारी में से पुरानी सुंदर साड़ी निकाली,
पोशाक सुंदर बनाने के खातिर लैस-जरी बाजार से मंगवाई,
मैं कुछ नया करने के लिए बेहद उत्साहित,
तो बहुरानी अनूठी पोशाक पहनने को बहुत लालायित,
तैयार हो गई जब बनकर वह पोशाक,
देखी मैंने उसके चेहरे पर खूबसूरत मुस्कुराहट,
वो खुशी झलकी जो बाजार की ड्रेस से भी नहीं पाई,
बहुत सुंदर एहसास हुआ जब मैंने पुरानी साड़ी में से सुंदर पोशाक बनाई,
कदकाठी थी हमारी एक समान मैंने भी वह ड्रेस अपने गात अटकाई,
लग रही ऐसे रहे जैसे बाजार ही अभी खरीद कर लाई।।
मैं खुशी का मौका कभी नहीं छोड़ती,
छोटी-सी खुशियों से मैं बड़ी सारी खुशियां मनाती।।
– सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान
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