मेरा शहर.
कि मेरे शहर का हाल मत पूछ मेरे दोस्त,
यहाँ तो अब जमीन-ए-शमशान भी महेंगी हो गयी है.
जिस पेड़ पर बनाये थे परिन्दों ने घोंसले,
उस पेड़ से सब टहनियाँ नदारद हो गयी हैं,
उम्र बीती है जिस मोहल्ले में मेरी,
उम्र बीती है जिस मोहल्ले में मेरी,
उस मोहल्ले की सारी गलियां सुनसान हो गयी है.
– पंकज गुप्ता