मेरा यार है कन्हैया मुझे क्या है परेशानी
सब छोड़ कर हुई हूँ कान्हा की मैं दिवानी
कुछ रास अब न आए सोना न खाना पानी
सब०—
धड़कन वो दिल की बनकर, सांसों में बस रहा है
रग रग में रक्त बन कर, वो श्याम बह रहा है
मेरी रूह में उतर कर, बने मेरी ज़िन्दगानी
कुछ०—-
मैं बात हूँ वो सरगम, मैं बूँद हूँ वो सागर
जीवन सफल हुआ है, चरणों की धूल पाकर
नादान थी अभी तक, अब मैं भई सयानी
कुछ०—
भक्तों के वास्ते ये , आते हैं नंगे पाँव
दुख दूर करते “प्रीतम”, बन कर वो ठण्डी छाँव
पग में जगह जो पाऊँ मिल जाए शादमानी
कुछ ०—-
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)