मेरा भाग्य और कुदरत के रंग….. मिलन की चाह
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच तो मिलन की चाह हम सभी सोचते हैं। परन्तु कुदरत के साथ ही जीवन चलता है क्योंकि हम सभी मानव और कुदरत के साथ रहते हैं। सच तो केवल यही है। हम सभी शब्दों के साथ अपने-अपने विचार और समाज की दृष्टिकोण को लिखते है। हम सभी लेखक या लिखने वाले होते हैं परंतु समाज के दृष्टिकोण से कुदरत और भाग्य के साथ हम कभी नहीं जीत पाए । क्योंकि जीवन में हम सभी कुदरत और भाग्य के साथ बने होते हैं बस एक समय चक्र के साथ हम अपने धन संपत्ति के साथ अपने को राजा या शहंशाह समझ सकते हैं परंतु वक्त के साथ हम सभी को चलना पड़ता है जिससे जीवन का सच और सही राह का आकलन होता है मिलन की चाह एक बहन और मां बेटी की सोच और उनके बेटे का सेना में देश की सेवा करने के लिए समर्पित है । और एक बहन रक्षाबंधन के दिन अपने भाई का इंतजार करती है और जिस भाई का वह इंतजार करती है इस भाई को सेवा में नौकरी उसके पिता की मृत्यु की जगह मिली हुई है परंतु मेरा भाग्य और कुदरत के साथ-साथ जो हमारे भाग्य में लिखा होता है और कुदरत जो जाती है वह सच और सटीक होता है हम सभी रंगमंच की कठपुतलियां हैं जो कभी अपनी सोच के साथ नहीं चल सकते है ।
मेरा भाग्य कुदरत के साथ आज की कहानी मिलन की चाहत जो की एक पारिवारिक परीक्षा की कहानी है। इस कहानी के पात्र सब काल्पनिक चरित्र के साथ परंतु हम सभी शब्दों के साथ सच को लिखते हैं जिससे जीवन में प्रेरणा मिलती है और हम ऐसी परिस्थितियों में जीवन का निर्वाह किस तरह करते हैं यह भी एक हमारे जीवन की हिम्मत और साहस की राह होती है जीवन की परीक्षाएं तो बहुत होती है परंतु हम सभी परीक्षाओं में पास हो जाएं ऐसा उचित नहीं आओ हम सब पढ़ते हैं मिलन की चाहत मेरा भाग्य कुदरत के रंग एक सच जो की एक बहन और एक मां की सोच और परिस्थितियों में निर्भर करती हैं ।
गुमान हम सभी को अपने जीवन में चाहत और मोहब्बत का होता हैं। बस मिलन की चाह भी शारीरिक और भावनात्मक लगाव के साथ साथ हमें एक दूसरे से होती हैं। जीवन और जिंदगी में एक दूसरे का सहयोग और विश्वास ही मिलन की चाह को बनाता हैं। हम सभी जानते हैं कि जीवन का सच तो यही है कि जब तक सांसों की ताज़गी और कुदरत का समय हम सभी के साथ रहता हैं। तब मानव शरीर का नाम ही एक जिज्ञासा के साथ उम्र के पड़ाव के रंगमंच का सच कहता हैं। मिलन की चाह तो हर उम्र और हर नर नारी के मन भावों के साथ-साथ रहतीं हैं। आओ हम सभी मिलन की चाह काल्पनिक चरित्र और सोच के शब्दों में पढ़ते हैं।
निशा आज बहुत खुश और मस्त थी और वह अपने बढ़े भाई आदित्य की छुट्टी पर घर आने के साथ उसकी नयी भाभी के रिश्ते से निशा की खुशी दुगुनी थी। पहली तो भाई की छुट्टी सेना से एक माह की मंजूरी मिल गई थी। और भाई रक्षा बंधन पर घर आ रहा हैं। और दूसरी खुशी नयी भाभी का रिश्ता उसकी जिंदगी में नंद बनने और भाभी से मिलन की चाह मन भावों में खुशी का मन उमंग और उत्साह से छूम रहा था।
बस निशा को अब रक्षाबंधन और नयी भाभी की मिलन की चाह से उसके मन की खुशी से वह मन ही मन खुशी से उसके चेहरे के रंग और भाव आस पड़ोस वाले भी कह रहे थे। और निशा भाई तो रक्षाबंधन पर आ रहा हैं। और उसके बाद ही आदित्य शादी भी कर रहा है। सभी मोहल्ले वालों को दावत का निमंत्रण जो था।
इधर निशा की मां भी खुश थी बस गम यही था कि आदित्य को नौकरी सेना में उसके पिता अमित की बार्डर पर मृत्यु उपरांत मिलीं थीं। बस समय और कुदरत का तो कोई कुछ नहीं कर सकता हैं। एक तरफ बेटे की नयी नवेली बहू से मिलन की चाह और अफसोस कि आदित्य के पिता मां के मन में यादें जो कि अब भी उसकी आंखों में नमी दे जाती हैं।
मिलन की चाह तो हम सभी के मन भावों में और हमारी सोच और इच्छा में होती हैं। परन्तु समय और कुदरत को जो मंजूर हैं। बस निशा और निशा की मां बहुत खुश थी कि आदित्य इस रक्षाबंधन पर अपने बहन की राखी का उपहार नयी भाभी के मिलन की चाह से पूरा करेगा। जीवन में कभी कभी हमें खुद अपनी ही नज़र खुशी को लग जाती हैं। ऐसा तो हम सभी कहते हैं। इतना खुश न हो कहीं नजर न लग जाए।
अचानक ही शहर के रेडियो और टेलीविजन पर खबर से शहर और गांव दहल जातें हैं। कि सेना में सभी जवानों की छुट्टी कैंसल की जा रही हैं। क्योंकि कुछ ऐसी खुफिया एजेंसियों द्वारा सूचना हैं कि देश में कोई खतरनाक साजिश आस पड़ोस से हो रही हैं। सभी जवानों को जबाब और भारत माता की रक्षा और सुरक्षा के लिए बार्डर पर र एकत्र होना हैं।
निशा और उसकी मां की खुशियां और नयी भाभी से मिलन की चाह का सच दूर होता जा रहा था। और बस मिलन की चाह के साथ साथ रक्षाबंधन के दिन भाई आदित्य का शव सेना तिंरगे में लेकर निशा और उसकी मां के पास पहुंचता है। बस सोच और मिलन की चाह भाई के मृतक शरीर पर रक्षाबंधन का सूत्र बांधते हुए निशा और उसकी मां निढाल हो जाती हैं।
मिलन की चाह जीवन में क्षण ओर पल में बदल जाती हैं। एक सच समय और कुदरत के रंग हम पहचानते हैं। फिर भी मन के विचारों में हम अहम् और वहम रखते हैं। बस जिंदगी गुज़र जाती हैं। मिलन की चाह कभी कभी अधूरी भी रह जाती हैं। गर्व हमें आदित्य की वीरता और बलिदान के साथ निशा और उसकी मां का नाम मिलन की चाह में मन भावों का सच रहता हैं। बस कुदरत और समय ही मिलन की चाह की राह होता हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र