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12 Feb 2022 · 1 min read

मेरा बचपन

मेरा बचपन

जब भी जाता गाँव,
दौड़कर बचपन मेरा आता है.
सुबक-सुबक भीगी आँखों से,
मुझको गले लगाता है।

वह छप्पर-छजनी का घर,
मुझे अब भी वहीं बुलाता है।
जाऊँ जब भी गोदी में
सिर रखकर मुझे सुलाता है।

वह ब्रह्मथान, वह माईथान,
वह पीतांबर बाबा का दर।
तेलिया,सँपदेवी, पूरन बाबा
तजिया-झंडा घूमना घर-घर।

भनसा घर का चौका चूल्हा,
नेनू-कद्दू की तरकारी!
होठों पर – हाय,अहा ही है,
आँखों में चिपकी सिसकारी!

यहाँ शहर में जब कोई,
अपनी मिट्टी मिल जाती है।
तन की नस-नस में तब मेरे,
सोंधी सुगंध खिल जाती है।

मेरी मिट्टी छूकर जब भी,
मंद बयार मुसकाता है।
सच पूछो, मुर्दे मन में भी,
जान प्राण सूख जाता है।

मिट्टी की छोटी-सी गाड़ी,
उसके नन्हें-नन्हें चक्के।
कंचे-गोली,गुल्ली-डंडे,
लूडो पर उमड़ पड़े छक्के।

वह कौन भूल सकता है भला,
मां की गोदी, बाबा का प्यार!
हमजोली से आँख मिचौली,
अपनी बस्ती , अपना यार!

फिर से मुझको अपना बचपन,
अपने पास बुलाता है,
“जब आना तब मुझे बुलाना”-
कहता – रोता – मुस्काता है।

Language: Hindi
355 Views
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